यही है कामना अपनी
यही है कामना अपनी, जगत के काम आ जायें।
चढ़ा जन्मान्तरों से है, वो सारा ऋण चुका जायें॥
भ्रमित हो मनुज अमृत के, भरोसे जहर को पीता।
असत् को सत् समझ करके,तमो मय जिन्दगी जीता॥
स्वयं को हम जला करके, अँधेरा यह मिटा जायें॥
कृपणता स्वार्थ परता छोड़, सेवक हम बनें सबके।
रहें हम साथ नित उनके, नहीं साथी यहाँ जिसके॥
विहंसकर दीन दुखियों को, गले से हम लगा जायें॥
न लायें साथ कुछ भी हम, न लेकर जा सकेंगे हम।
यहाँ कुछ दे न पाये तो, न आगे पा सकेंगे हम॥
उचित है हाथ से अपने, यहाँ सब कुछ लुटा जायें॥