युग के विश्वामित्र नमन
युग के विश्वामित्र! नमन कर रहा, विश्व तुमको स्वीकारो।
तन तो तन से बिछुड़ गया, पर मन तो मन से नहीं बिसारो॥
युग वशिष्ठ! तुमने गायत्री, कामधेनु का दूध पिलाया।
माँ से बेटे बिछुड़ गये थे, किया अनुग्रह उन्हें मिलाया॥
युग के याज्ञवल्क्य! तुमने ही, यज्ञ पिता की बाँह थमाई।
ओज तेज वर्चस के दाता, सविता से पहिचान बढ़ाई॥
आप बिना है कौन हमारा, इस पीड़ा पर तनिक विचारो॥
विकृत चिन्तन से अभिशापित, युग- युग से यह जन मानस था।
पतन, पराभव पीड़ाओं से, टूटा टूटा जनमानस था॥
युग भागीरथ! तुमने तपकर, प्रज्ञामय हिमनग पिघलाया।
और ज्ञान गंगा लहराई, दुश्चिन्तन से मुक्त कराया॥
युग के परशुराम तुम फिर अब, विकृतियों के शीश उतारो॥
युग दधीचि! सुर संस्कृति के हित, तुमने निज अस्थियाँ जला दीं।
पीकर विश्व वेदना का विष, नीलकण्ठ गरिमा दोहरा दी॥
पीड़ित मानवता की पीड़ा, हर धड़कन में बोल रही थी।
मुख मण्डल की रेखाएँ भी, अन्तर पीड़ा खोल रही थीं॥
जनमानस में भी जन पीड़ा, के प्रति संवेदन विस्तारो॥
क्या हम करें समर्पित इस क्षण, स्वयं समर्पण की प्रतिमा को।
श्रद्धाञ्जलि क्या करें समर्पित, श्रद्धा की अथाह गरिमा को॥
युग दधीचि के शक्ति कलश की, साक्षी में हम आज शपथ लें।
सतत् गलेंगे जनमंगल हित, युग दधीचि को आश्वासन दें॥
ओ दधीचि वंशज! दधीचि के, शक्ति कलश की ओर निहारो॥