गीत माला भाग १३

लोकमंगल के लिए खुद

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लोकमंगल के लिए खुद

लोकमंगल के लिए खुद को तपाया आपने।
लोकहित में लोकशिव! जीवनरस पाया आपने॥

हुआ था शापित कि जन मानस निरे अज्ञान से।
और वंचित हो रही थी, मनुजता सद्ज्ञान से॥
मुक्ति देने, ज्ञान- गंगा को बहाया आपने॥

दुर्गुणों, दुर्व्यसनों, दुश्चिन्तन ग्रसित थी मनुजता।
भोग- विषयों के विषम- विष से त्रसित थी मनुजता॥
उसे व्यसनों और विकृति से छुड़ाया आपने॥

आप विषपायी बनें व विषमता विष पी गए।
भेदभावों को मिटाने, हर चुनौती सह गए॥
और मानव मात्र को, यज्ञ में बिठाया आपने॥

धर्म व विज्ञान आपस में विरोधी थे बने।
बने थे लंगड़े व अंधे, प्रगति अवरोधी बने॥
धर्म को विज्ञान को, सहचर बनाया आपने॥

पतनपीड़ा पराभव से द्रवित होकर आपने।
लिया ‘युग निर्माण’ व्रत संकल्पित हो आपने॥
लोकसेवी- शिवगणों को, संग जुटाया आपने॥

नाथ! शिवसंकल्प करते लोकसेवी आपके।
बनेंगे पीड़ा- हरन, शापित जनों के ताप के॥
चलेंगे बलिदान पथ पर, जो दिखाया आपने॥
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