राम फिर से ले लो अवतार
राम फिर से ले लो अवतार, दुःखी है भारत की नारी।
करो फिर से आकर उद्धार, बहुत पीड़ित है बेचारी॥
हुआ छल छद्मों का विस्तार, संभ्रमित उसको करने को।
हजारों चन्द्र आज तैयार, शील नारी का हरने को॥
महिलायें करती मनुहार, चले आओ संकट- हारी॥
हुआ अपमानित उसका प्यार, हृदय की श्रद्धा रोती है।
त्याग भी मूल्यहीन हो गया, अहेतुक सेवा रोती है॥
वही शबरी की आँसू धार, चले आओ धनुर्धारी॥
त्राहि- त्राहि कर उठी सभ्यता, ओ नारी कल्याणी।
भारतीय संस्कृति के नयनों का, मत खोओ पानी॥
त्यागो वह परिवेश कि जिसमें, आधे अंग खुले हों।
छोड़ो वे श्रृंगार बहुत से, जिसमें रंग मिले हों॥
सादा जीवन उच्च विचार, की महिमा हो जानो।
आदर की तुम पात्र बहनों, अपनी गरिमा पहिचानों॥
सबके मन में पवित्रता की, धारा तुम्हें बहानी।
भारतीय संस्कृति के नयनों का, मत खोओ अब पानी॥
चंचल मन को वश में करने के लिए गायन आकर्षक विद्या है। अज्ञानी जीव भी सुन करके एक टक ध्यान मग्न हो जाता है। - कबीर दास