वन्दना के इन स्वरों में
वन्दना के इन स्वरों में, एक स्वर मेरा मिला लो॥
वन्दिनी माँ को न भूलूँ, राग में जब मस्त झूलूँ।
अर्चना के रत्न कण में, एक कण मेरा मिला लो॥
जब हृदय के तार बोले, श्रृंखला के बन्द खोले।
हो जहाँ बलि शीश अगणित, एक सिर मेरा मिला लो॥
मुक्तक-
वन्दना का स्वर बनूँ मैं, लालसा है,
अर्चना का कण बनूँ मैं, वांछा है।
माँ न विस्मृत हो कभी भी एक क्षण को,
शीश भी अर्पित करूँ, आकाँक्षा है॥