विश्व मन्दिर में विराजी
विश्व मन्दिर में विराजी, मूर्ति सद्गुरु की निहारें।
दीप निष्ठा के जलाकर, आरती उनकी उतारें॥
मिल गये सद्गुरु जिसे, पारस उसी ने पा लिया है।
पी लिया ‘गुरु मंत्र’ जिसने, वह अमृत होकर जिया है॥
ज्योति प्रज्ञा की प्रखर, अंतःकरण में हम सँवारे॥
लोक मंगल से भरे घट, सजल श्रद्धा के दुलारे।
साधना सेवा वृत्ति जो, वे सभी परिजन हमारे॥
इस विशद परिवार का पथ, सिद्धियाँ मिलकर बुहारें॥
भावना की सम्पदा अनमोल, गुरुवर से मिली है।
दृष्टि उनकी हर हृदय में, चाँदनी बनकर खिली है॥
जो अँधेरे में भटकते, हम उन्हें खोजें पुकारें॥
हो द्रवित तप से हिमालय, ने विमल धारा बहायी।
पी रहा पीयूष युग शिशु, गोद उषा ने सजायी॥
दे गये सब शक्ति गुरुवर, बस हमीं हिम्मत न हारें॥
जो अवसरों का उपयोग करना जानते हैं, वे उन्हें पैदा भी कर सकते हैं।
- जॉन स्टुअर्ट मिल