गीत माला भाग १३

यूँ घबराओ नहीं कि तुम

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यूँ घबराओ नहीं कि तुम

यूँ घबराओ नहीं कि तुम तो, युगऋषि की सन्तान हो।
क्या कर सकते नहीं कि तुमको,यदि अपनी पहचान हो॥

बहुत माँगते रहे अभी तक, अब तो कर्ज चुकाना है।
अवतारी गुरु सत्ता के प्रति, अपना फर्ज निभाना है॥

ग्वाल बनो गिरधर के, वानर, रीछ बनो श्रीराम के।
उस महान सत्ता के तुम, सहयोगी बहुत महान हो॥

तुम हो उसके शिष्य की जिसने, जीवन स्वयं गला डाला।
सारे जग का दर्द कि जिसने, अपने मन में था पाला॥

तुम्हें न शोभा देता ऐसे, आत्महीन बन घूमना।
तुम हो राजकुमार, भला क्यों अपने से अन्जान हो॥

युग की दिशा बदल जायेगी, अगर तुम्हारा मन बदले।
बदले सकल समाज, तुम्हारा यदि चरित्र- चिन्तन बदले॥

हम बदलेंगे- युग बदलेगा, यही एक आदर्श हो।
ज्योतिपुञ्ज के अंश, तुम्हीं कल के उगते दिनमान हो॥

अगर बना व्यक्तित्व प्रखर, जग पीछे दौड़ा आयेगा।
प्रामाणिक आचरण तुम्हारा, फिर जन- जन अपनायेगा॥

भटके हुए देवता, सत्पथ पर चलकर तुम देख लो।
निराकार के रूप तुम्हीं हो, तुम्हीं दृश्य भगवान हो॥

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