युगों- युगों से तार रहा जग
युगों- युगों से तार रहा जग, पावन नाम तुम्हारा।
हे श्रीराम आपसे बढ़कर, कोई नाम न प्यारा॥
सारा देश कराह रहा था, हुए पहरूये बहरे।
दुष्ट आचरण और भ्रष्ट, चिन्तन वाले जो ठहरे॥
लगे धर्म दर्शन पर अपने, क्रूर काल के पहरे।
पाश्चात्य संस्कृति ने हम पर, किये आक्रमण गहरे॥
तब अपनी संस्कृति को तुमने, पहली बार उबारा॥
नारी जीवन की पवित्रता को, आ आँच रही है।
बुद्धिजीवियों के माथे पर, नंगा नाच रही है॥
थी आसीन मंच पर कुत्सा, कोई जाँच नहीं थी।
भारतीय नारी थी हीरा, कोई काँच नहीं थी॥
उसे संगठित किया शक्ति दी, देकर सबल सहारा॥
मृत्युपर्व मानी संस्कृति का, कर डाला तर्पण।
सरस्वती साहित्य बन गया, खजुराहो का दर्पण॥
कर बैठा सिद्धान्त शक्ति के, आगे आत्म समर्पण।
हुई लेखनी रूप और धन, पद वालों को अर्पण॥
मध्य महाभारत तब तुमने, गीता धर्म उतारा॥
नये विचार क्रांति की तुमने, कर सारी तैयारी।
सृजन सैनिकों की सेना है, सागर तीर उतारी॥
शुरू हो गया पाश्चात्य, संस्कृति से है रण भारी।
साक्षी है इतिहास आपकी, सेना कभी न हारी॥
विष्णुरूप तुमने ही युग- युग चक्र सुदर्शन धारा॥