सर पे तेरे घड़ा है
सर पे तेरे घड़ा है अगर पाप का,
तो प्रभु को बुलाने से क्या फायदा।
मुख में है राम तेरे बगल में छुरी,
ढोंग ऐसे रचाने से क्या फायदा॥
रात दिन दूसरों की बुराई करे,
पाप गंगा में जा जाके धोया करे।
अपने मन को तू मूरख समझ ना सके,
तो फिर गंगा नहाने से क्या फायदा॥
लाख दारा सिकन्दर हुए हैं यहाँ,
काल के चक्र में खो गये हैं कहाँ।
दो घड़ी के सभी लोग मेहमान है,
ज्यादा शेखी बताने से क्या फायदा॥
मंदिर में तो पत्थर की है मूर्ति,
उसको विश्वास से देवता मानते।
दिल के मंदिर को पगले समझ न सका,
तो फिर मंदिर में जाने से क्या फायदा॥
जाल माया में दिन रात फँसता रहा,
देख दुःख दूसरों के तू हँसता रहा।
सर पे आई तेरे जब दुःखों की घड़ी,
तो दूसरों को सुनाने से क्या फायदा॥