सत्संग ने कई का जीवन सत्संग ने कई का जीवन बदल दिया है।
ऋषियों मनीषियों ने, इस पर ही बल दिया है॥
थे बाल्मीकि डाकू, परिवार पालते थे।
है पुण्य- पाप कैसा? वह यह न जानते थे॥
ऐसे ही सप्त ऋषियों को रोक लिया उनने।
तो बाल्मीकि से था यह प्रश्न किया ऋषि ने॥
परिवार बटायेगा दुष्कर्म जो किया है॥
उत्तर मिला नहीं में तो आँख खुल गई फिर।
इस सत्य से विचारों की गर्द धुल गयी फिर॥
जीवन बदल ही डाला ऐसी उठी व्यथा फिर।
ऋषि तुल्य लेखनी ने दी राम कथा लिख फिर॥
सुविचार के सहारे जीवन अमर किया है॥
रत्ना के प्यार में थे कामान्ध हुए तुलसी।
मुर्दे को नाव समझे थे सर्प बना रस्सी॥
रत्ना ने वासना की जब व्यर्थता बतायी।
तो आँख खुल गई फिर श्री राम कथा गायी॥
सत्संग ने महात्मा तुलसी हमें दिया है॥
मोहन ने बालपन में हरिश्चन्द्र खेल देखा।
बस खिंच गई हृदय में सत् की अटूट रेखा॥
गाँधी बने महात्मा था सत्य को न छोड़ा।
सत्याग्रही बने वे अनुगामियों को मोड़ा॥
नाटक को देखकर ही जीवन बदल दिया है॥