शक्ति- साधना बिना न बनता
शक्ति साधना बिना न बनता, बिगड़ा कोई काम।
नारी तुम हो शक्ति राष्ट्र की, शत्- शत् तुम्हें प्रणाम॥
महादेव शिव ने जगहित है आदि शक्ति को साधा।
बने ‘अर्द्धनारीश्वर’ जिसमें रूप तुम्हारा आधा॥
देवों को, जब- जब असुरों ने छेड़ा और सताया।
तब देवों को भी विपदा में, ध्यान तुम्हारा आया॥
तब दुर्गा बनकर तुमने ही, जीते वे संग्राम॥
वीर शिवा भी तो माँ से प्रेरित हो आए आगे।
रिपु भी टिक न सके थे जिनकी प्राण शक्ति के आगे॥
झाँसी की रानी बन तुमने, जब तलवार चलायी।
अंग्रेजों जैसे शासक की, छाती थी थर्रायी॥
है ‘प्रभात’ उत्साह तुम्हारा, उदासीनता शाम॥
घर, परिवार, राष्ट्र की दुर्गति, तुम्हें निहार रही है।
युग- युग से पीड़ित मानवता, तुम्हें पुकार रही है॥
किन्तु उपेक्षा, उदासीनता, देख तुम्हारी नारी।
मानवता छटपटा उठी है, मन में पीड़ा भारी॥
आधी- आबादी की मूर्छा का, यह है परिणाम॥
शक्ति न जागी तो शिव कैसे दुष्ट अशिव को तोड़े।
ध्वंस हुआ हावी मानव को कौन सृजन से जोड़े॥
रुका हुआ हर क्षेत्र- प्रगति का, लंगड़ाई सी गति है।
बिना तुम्हारे रुकी- रुकी सी, नर की सभी प्रगति है॥
शक्ति न जागी अगर राष्ट्र की, होगा क्या अंजाम॥