गीत माला भाग १४

शंख घण्टियाँ गूँज रही हैं

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शंख घण्टियाँ गूँज रही हैं

शंख घण्टियाँ गूँज रही हैं, जन्म शताब्दी की बेला॥
हम सब बेटे हैं गुरुवर के, अग्नि परीक्षा की बेला॥

उनका है व्यक्तित्व हिमालय, गुरु जीवन क्या जी पाये।
तपोमूर्ति गुरुवर के बेटे, तप को क्या अपना पाये॥

अन्तर के सब द्वार खोल ले, अनुदानों की है बेला।
गायत्री की आज जयन्ती, जन्म शताब्दी की बेला॥

ज्ञान गंग धरती पर लाये, युग के भागीरथ बनकर।
ज्ञानामृत हम पहुँचा पायें, भागीरथ के सुत बनकर॥

समय साधना तन मन जीवन, अर्पित करने की बेला।
गायत्री की आज जयन्ती, जन्म शताब्दी की बेला॥

सद्विचार से युग बदलेगा, सद्विचार की जन्मशती।
जन- जन में देवत्व जगेगा, गुरुवर की यह जन्मशती॥

श्रद्धा का यह महापर्व है, शपथ उठाने की बेला।
गायत्री की आज जयन्ती, जन्म शताब्दी की बेला॥

प्यार उन्हीं का मूल मंत्र है, सांचा गढ़कर दिखलाये।
जब भी उन्हें पुकारा हमने, थपकी देकर सहलाये॥

करुणा की साकार मूर्ति वे, प्यार लुटाने की बेला।
गायत्री की आज जयन्ती, जन्म शताब्दी की बेला॥

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