शान्तिकुञ्ज बन गया छावनी शान्तिकुञ्ज बन गया छावनी, अब जीवट दिखलाना है।
सृजन सैनिकों! युग सैनिक का, अब तो भार उठाना है॥
ज्ञान मशाल- विचार क्रान्ति की, उनको पथ दिखलाती है।
भाषा शान्तिकुञ्ज की जिनको, सहज समझ में आती है॥
शान्तिकुञ्ज प्रतिभाओं के हित, बुनता ताना- बाना है॥
लेकर जो भाषा न समझते, युग ऋषि के सन्देश की।
‘स्वर्ग’ धरा पर और मनुज में, ‘दैवीतत्व’ प्रवेश की॥
महाकाल की भाषा में ही, अब उनको समझाना है॥
दुष्प्रवृत्तियों, कुरीतियों का, दुर्व्यसनों का जोर है।
है विवाह उन्माद निरंकुश, क्रूर दहेज कठोर है॥
इनके षड्यन्त्री अड्डों को, अब अविलम्ब मिटाना है॥
नारी की गरिमा गिरती है, नहीं किसी को ध्यान है।
विज्ञापन करने वालों पर, अब सवार शैतान है॥
हर अश्लील विधा पर हमको, गहरी चोट लगाना है॥
सद्साहित्य शस्त्र को लेकर, जाना है मैदान में।
दुश्चिन्तन का हर एक मोर्चा, उखड़े इस तूफान में॥
असहयोग का सत्याग्रह का, साहस हमें जुटाना है॥