सुनो हृदय पट खोल सुनो हृदय पट खोल सब जन, यह प्रज्ञा पुराण है।
यह प्रभु का संदेश इसमें, युग ऋषि का तप प्राण है॥
जब- जब बढ़ी असुरता तब- तब, प्रभु ने उसे मिटाया है।
प्रभु के संग- संग युग दूतों ने, निज कर्तव्य निभाया है।
जागृत हो युगदूत जिससे, यह ऐसा अभियान है॥
इस युग में बनकर अनास्था, भीषण दानव छाया है।
करने दमन दुष्टता का प्रभु, प्रज्ञा बनकर आया है।
पलट असुरता जाय यह तो, ऐसा प्रबल उफान है॥
जन- मन में जा घुसी असुरता, जल्दी उसका नाश हो।
हृदय बुद्धि में फिर स्थापित, शुभ, श्रद्धा, विश्वास हो।
रोके नहीं रुकेगा यह तो, प्रभु का अटल विधान है॥
जिनको प्रभु का प्यार चाहिए, वे सब इसका वरण करें।
अपनाकर आदर्श उन्हीं का, साहसमय आचरण करें।
जागे सुख, सौभाग्य सबका, यह ऐसा वरदान है॥
स्वरेण संल्लीयते योगी’ स्वर साधना के द्वारा योगी अपने को तल्लीन करते हैं।