सुनो कथा यह कान लगाकर सुनो कथा यह कान लगाकर, स्थिर होकर ध्यान से।
यह प्रज्ञा पुराण अति पावन, मुक्त करे अज्ञान से॥
सुनो कथा यह ध्यान से, रहो नहीं अज्ञान से॥
बिना ज्ञान के जप तप पूजा, करती है कल्याण नहीं।
कथा ज्ञान का सागर है यह, कर देगी कल्याण सही।
गंगा गोदावरी, सरिस यह, सुख देती स्नान से॥
परम पिता का प्यार चाहते, हो तो इसका वरण करो।
हृदय भरो श्रद्धा निष्ठा से, मंगलमय आचरण करो।
प्रज्ञावान बनो जिससे यह, जीवन बीते शान से॥
यदि प्रमाद में रहे आप तो, जीवन भर पछतायेंगे।
समय सुनहरा निकल गया तो, काम न कोई आयेंगे।
प्रभु का यह संदेश सुनो अब, इस प्रज्ञा अभियान से॥
‘‘गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगीतमुच्यते’’
गीत, वाद्य और नृत्य इन तीनों को संगीत कहते हैं। इस प्रकार ‘संगीत’ के शब्द में गीत, वाद्य और नृत्य इन तीनों का समावेश माना गया है।
- (संगीत रत्नाकर)