विमल भावना भर भाषा में
विमल भावना भर भाषा में, संदेशा भेजा माँ ने।
हर सपूत तक पहुँचाना है, वह माने या ना माने॥
दूर देश जाकर तुम सब क्यों? अपनी गरिमा भूल गये।
योगी की क्षमता है तुममें, क्यों? भोगों में फूल गये॥
बस अपना निर्वाह कर लिया, पशु से ज्यादा क्या पाया?
देवभूमि के देवदूत तुम, यह क्यों याद नहीं आया?
अब तो अपनी गरिमा के अनुरूप बुनों ताने बाने॥
आज कसौटी पर मानव को, परख रही है मानवता।
मानव में कितनी मानवता, निरख रही है ऋषिसत्ता॥
मानवता का मान बढ़ाना, देखें किसको आता है?
कौन दिखाता प्यार ऊपरी, किसका सच्चा नाता है?
सबकी कठिन परीक्षा होगी, अब जाने या अनजाने॥
मानवता ने विज्ञान गढ़ लिया, सीख गया है शिष्टाचार।
यह तो बस पहली सीढ़ी है, कौन सिखाये सद्आचार॥
जब संस्कृतिमय जीवन होगा, तब मानव सुख पायेगा।
संस्कृति पुत्रों सिवा तुम्हारे, कौन सिखाने आयेगा?
दैवी संस्कृति के प्रसार हित, बन जाओ तुम दीवानें॥
देवभूमि की सन्तानों ने हरदम फर्ज निभाया है।
संस्कृति का अभ्यास स्वयं कर, दुनियाँ को सिखलाया है॥
दानवता से त्रस्त मनुजता, उसको आज बचाना है।
संस्कारों की परम्परा को, जन- जन तक पहुँचाना है॥
देगी माँ वरदान अनोखे, युग दूतों को मनमाने॥