गीत माला भाग १४

विश्व की सत्प्रेरणा के स्रोत

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विश्व की सत्प्रेरणा के स्रोत

विश्व की सत्प्रेरणा के स्रोत, सविता को नमन।
जीव की हर चेतना के स्रोत, सविता को नमन॥

तुम नियन्ता की सृजन की शक्ति के आधार हो।
ज्योति के हे पुञ्ज! प्रभु के रूप तुम साकार हो॥
ईश की अवधारणा के स्रोत, सविता को नमन॥

मिल सके तुमसे हमें ओजस्, प्रखर तेजस् प्रभो।
और वर्चस्वी बने प्रत्येक का अन्तस् प्रभो॥
दिव्यता की साधना के स्रोत, सविता को नमन॥

देह, मन, अन्तःकरण को प्राणमय कर दो प्रभो।
विश्व के संताप से सबको अभय कर दो प्रभो॥
मानवी सद्भावना के स्रोत, सविता को नमन॥

प्राण- ऊर्जा से हमारी हर क्रिया भरपूर हो।
ज्ञान के भण्डार! हर जड़ता मनुज की दूर हो॥
बुद्धि औ संवेदना के स्रोत, सविता को नमन॥

लोक मंगल को मिली हर ऋद्धि औ हर सिद्धि हो।
दूर हों दुष्वृत्तियाँ, सद्वृत्तियों में वृद्धि हों॥
लोकहित की कामना के स्रोत, सविता को नमन॥

आत्म विश्लेषण करें सब बन सकें अन्तर्मुखी।
दिव्य पाये दृष्टि हर मानव, बने जीवन सुखी॥
स्वर्ग की सम्भावनाओं के स्रोत, सविता को नमन॥

कल्मषों की कालिमा हर लो, मिटे दुःख, शोक अब।
व्यक्ति के अन्तःकरण तक तुम भरो आलोक अब॥
सतयुगी प्रस्तावना के स्रोत, सविता को नमन॥
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