समय की पुकार है
समय की पुकार है, चाहते धरा गगन।
बेहतर इन्सान और, सृजन शील संगठन॥
क्रूर ध्वंस हँस रहा, रो रही मनुष्यता।
पस्त हुई सज्जनता और मस्त दुष्टता॥
तोड़- फोड़ करने को, दौड़ सभी आते है।
करने में भले काम, डरते सकुचाते हैं॥
किससे है आशा जो रोक सके यह पतन॥
अब तो इन्सान करे ऐसी कुछ साधना।
जागे सुविचार और दिव्य प्रेम भावना॥
सुख- दुख सब बाँट सके, सबमें सहकार हो।
हर कुचक्र तोड़ सके, वह बल संचार हो॥
आये उज्ज्वल भविष्य, कौन करे यह पतन॥
कोई हो जाति- पाँति, कोई धर्म सम्प्रदाय।
मनुज बने देवता, सब करें यही उपाय॥
फिर नव निर्माण हेतु सज्जन हो संगठित।
तब सधे समाज हित, राष्ट्रहित, जनहित॥
न्याय पर रहे अडिग, अनीति का करे दहन॥
जागे सहकार, और शौर्य श्रेष्ठ वीरों का।
पायें सब संरक्षण ऋषियों का पीरों का॥
अपनायें ईश्वरीय शक्ति और योजना।
भेदभाव भूल, करे सभी सृजन साधना॥
जीवन हो धन्य करें स्वर्ग का यहीं सृजन॥