संस्कार की परम्परा
संस्कार की परम्परा, जिस दिन से उठ गई।
उस दिन से ही नर रत्न की, खदान लुट गई॥
होते हैं जन्म से तो सभी क्षुद्र वृत्ति के।
संस्कार बनाते हैं उन्हें सत्प्रवृत्ति के॥
संस्कार की भट्टियों में जो तपे थे।
संस्कार दिव्य उनमें निरन्तर ही पके थे॥
गहरी परत कषाय कल्मषों की छा गई॥
संस्कार थे सोलह शुभ, निर्माण के लिए।
ये सीढ़ियाँ थी व्यक्ति के उत्थान के लिए॥
जो शक्तियाँ सोई, संस्कार जगाते।
उत्कृष्ट प्रेरणायें भी, संस्कार उठाते॥
संस्कार घट गये तो प्रेरणा भी घट गई॥
संस्कारों के घर- घर में केन्द्र बनायें।
परिवार के सदस्यों के संस्कार करायें॥
घर- घर में हो उपासना, की पुण्य स्थली।
करके उपासना जहाँ संतान हो भली॥
क्यों प्रेरणा के स्रोत से ही, दृष्टि हट गई॥
प्रहलाद,ध्रुव, लवकुश, संस्कार ने दिये।
माता मदालसा की याद, है नहीं किन्हें॥
संस्कार ने ऐसे भी चमत्कार कर दिये।
सम्राट चन्द्रगुप्त शिवा, छत्रपति किये॥
संस्कार बिना श्रेष्ठ संस्कृति ही मिट गई॥