सारी जगती है जन्मभूमि
सारी जगती है जन्मभूमि, हर मानव अपना भाई है।
सारी दुनियाँ परिवार मान यह, ज्ञान मशाल जलाई है॥
हम अपने और पराये का, संकीर्ण भाव कब लाते हैं?
जन- जन की पीड़ा हरने का, अपना कर्तव्य निभाते हैं॥
पीड़ा तो पीड़ा होती है, क्या अपनी और पराई है॥
प्रभु को रहीम करुणा- निधि कह, उनकी स्तुतियाँ गाते हैं।
पर स्वार्थ, अहंता की खातिर, बहुतों का हृदय दुखाते हैं॥
हमदर्दी में रहते रहीम, करुणा में कृष्ण कन्हाई है॥
सम्पत्ति बनायी है प्रभु ने, हम तो बस ढेर लगाते हैं।
वह दाता है उदार निश्छल, हम शोषण क्यों अपनाते हैं॥
तृण भी दाता बन जीते हैं, क्यों कृपणता आयी है॥
प्रभु कहलाते है समदर्शी, हम ही तो भेद बढ़ाते हैं।
वह प्रगति चाहता है सभी का, हम क्यों अवरोध लगाते हैं॥
शबरी केवट को गले लगा, प्रभु ने भी गरिमा पायी है॥
सुनलो पुकार मानवता की, आवाज समय की पहचानों।
मानव हित में सच्चे दिल से, कुछ करने की मन में ठानों॥
यह युग ऋषि का संदेश है, इसमें हर तरह भलाई है॥