सोना नहीं तपा तो
सोना नहीं तपा तो, कुन्दन नहीं बनेगा।
बिन साधना के सार्थक, जीवन नहीं बनेगा॥
सोना खदान में है, माटी बना रहेगा।
कंचन सा मनुज जीवन, अनगढ़ पड़ा रहेगा॥
दोनों नहीं तपेंगे, कंचन नहीं बनेगा॥
व्यक्तित्व की महत्ता, तप ही निखारता है।
तप ही कषाय- कल्मष, बाहर निकालता है॥
बिन साधक परिष्कृत, चिंतन नहीं बनेगा॥
चिंतन चरित्र बनता, चिंतन सुधारिएगा।
तप, त्याग, तितीक्षा से, क्षमता निखारिएगा॥
सुरभित नहीं हुआ तो, चंदन नहीं बनेगा॥
जीवन की साधना कर, देवत्व को निखारें।
इस ही मनुज धरा को, हम स्वर्ग सा सँवारें॥
सुमनों सा हम न महकें, नन्दन नहीं बनेगा॥
मुक्तक- यदि चाहो तुम जगहित, और आत्म उद्वार। जीवन में तप साधना, कर लो अंगीकार॥