सुनों- सुनों बहिन- भाईयों
सुनों- सुनों बहिन भाईयों, हम सब के हित की बातें हैं।
गुरुवर की अनुकम्पा से यह, सबको आज सुनाते हैं॥
पूर्व तपस्या के बल पर, मानव तन सब पाते हैं।
अज्ञानी बन अहंकार से, जीवन व्यर्थ गँवाते हैं॥
समझ न पाए कर्तव्यों को, आज उसे समझाते हैं॥
धन- दौलत के पीछे हम, जो निशिदिन दौड़ लगाते हैं।
अन्त समय में अंश मात्र भी, साथ नहीं ले जाते हैं॥
फिर क्यों हम दाता के हक को, देने में सकुचाते हैं॥
हिंसा करना महापाप है, सभी धर्म बतलाते हैं।
मछली- मांस और मंदिरा को, गिरे हुए नर खाते हैं॥
मानव से दानव बन करके, नाहक कलह मचाते हैं॥
पाप और हिंसा के कारण, प्रलय भयंकर आया है।
युग परिवर्तन निश्चित होगा, महाकाल की माया है॥
इसीलिए हम आप सभी को, गुरु की राह दिखाते हैं॥
स्वभाव से ही उदार हों, कभी भी अनुदार न बनें, उदारदृष्टि से ही विचार करें। ऐसा करने से चित्त शुद्ध हो जाता है। - गायत्री स्मृति- 22