हमें सद्गुणों का खजाना
हमें सद्गुणों का खजाना मिला है।
मगर व्यर्थ में ही लुटाना मना है॥
परिवार है सबसे बड़ी योगशाला।
वो पाता है गौरव परिवार वाला॥
गुण कर्म स्वभाव होते हैं निर्मित।
नर रत्न निकले, यहीं से अपरिमित॥
परिवार है पुष्ट व्यायामशाला, इसे दीन दुर्बल बनाना मना है॥
मनुज को मिला जो भी, वह न किसी को।
अरे यह खजाना, दिया है उसी को॥
किसी और के पास यह तन नहीं है।
किसी और के पास यह मन नहीं है॥
धरोहर निरर्थक गँवाना मना है, इसे दीन दुर्बल बनाना मना है॥
इन्हें संयमित कर, बने देवता हम।
करे दूर इनसे, दुःख की व्यथा हम॥
न गरिमा गिरा कर, जियें हम जगत में।
करे लोक मंगल, लगे लोक हित में॥
असंयम भरे पग उठाना मना है, मगर व्यर्थ में ही लुटाना मना है॥