गीत माला भाग १६

हे माँ ऐसी आत्मशक्ति दो

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हे माँ ऐसी आत्मशक्ति दो

हे माँ ऐसी आत्मशक्ति दो, दुखियों का दुःख दूर करें।
प्राणी मात्र के जन- जीवन में, करुणा के मृदुभाव भरें॥

श्रम से कभी नहीं मुख मोड़ें, दीन- हीन का साथ न छोड़ें।
पर दुःख को अपना दुःख जानें, सद्गुरु की महिमा पहिचानें॥
सुर- दुर्लभ मानव तन पाकर, पिछड़ों का उपकार करें॥

शाश्वत ज्ञानयज्ञ हो घर- घर, उर में बहे नेह का निर्झर।
विकसित हो दैवी क्षमतायें, रहे न दायें बायें॥
मानव रिक्त हृदय अविरल, निर्मल निश्छल प्यार भरें॥

त्याग, तपस्या मय हो जीवन, परहित में अर्पित हो तन- मन।
सुख समाधि की रहे न इच्छा, मागें नहीं स्वार्थ की भिक्षा॥
कर्तव्यों से विमुख न हों हम, संकल्पों को पूर्ण करें॥

ध्वनि की उस विशिष्ट रचना को जिसमें स्वर तथा वर्णों के कारण सौंदर्य हो जो मनुष्य के चित्त का रंजन करे, अर्थात् श्रोताओं के मन को प्रसन्न करे, बुद्धिमान लोग उसे राग कहते हैं।
-(अभिनव राग मंजरी)
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