हे मेरे गुरुदेव कृपा सागर
हे मेरे गुरुदेव कृपा सागर, कृपा कर दीजिए।
शान्ति पा जाये धरा, ऐसा उसे वर दीजिए॥
स्वार्थ में डूबे सभी अभिमान में फूले हुए।
दूसरों की पीर या दुःख, दर्द हैं भूले हुए॥
आप हृदयों में सजल संवेदना भर दीजिए॥
देह- साधन के लिए हर आदमी बेचैन है।
शान्ति से भरपूर अब कोई नहीं दिन रैन है॥
हर विकल मन को प्रभो! शीतल सरोवर दीजिए॥
आदमी को आदमी पल भर यहाँ भाता नहीं।
शब्द कोई भी हृदय छूकर कभी आता नहीं॥
नाथ! हमको भावना- भीगा वही स्वर दीजिए॥
पेड़ की हर डाल पर सुलगी भयंकर आग है।
भूमि पर अब ताप से कुम्हला रहा बाग है॥
पा सके जीवन पुनः वह नीर निर्झर दीजिए॥
आपकी पाकर कृपा हर व्यक्ति निर्मल मन बने।
और हर कुविचार गंगा नीर- सा पावन बने॥
हम बखेरें चाँदनी, ऐसा सुधाकर दीजिए॥