हो व्यक्तित्व विकास
हो व्यक्तित्व विकास, इसलिए प्रेम प्रकाश करो॥
मानस में हो मंजुल संगम, विद्या और विनय का।
कर्म- धर्म का धवल ध्यान हो, हो विश्वास विजय का॥
अमर विश्व बन्धुत्व भावना, फैलाओ जन गण में।
औरों को सुख से जीने दो, चाहे स्वयं मरो॥
केवल स्वावलम्बन का बल हो, इस काया का सम्बल।
श्रम की गरिमा करती जाये, जीवन का मुद मंगल॥
जीने की आशा से हो, आलोकित अब जग सारा।
घृणित अमंगल के तम का विष, शिव बन शीघ्र हरो॥
संयम और नियम अपनाओ, नीति प्रीति हों मन में।
अपने को जानों ले जाओ, चिन्तन और मनन में॥
सुविचार सद्भावों का, हो जाए उत्सव प्रवाहित।
स्नेह, सौम्य सरिता लहराये, ऐसा भाव भरो॥
संगीत जीवन का रस है, जिससे हृदय के तार झंकृत होते हैं। अपने युग के अनुरूप युग संगीत व्यक्ति के आदर्शों, मर्यादाओं और मानवी पुरूषार्थ को जागृत करता है।