हम बदरी बन छायेंगी
हम बदरी बन छायेंगी, सबको आश लगेगी।
बूंद- बूंद छलकायेंगी, भूखी प्यास बुझेगी॥
हम सागर के संग तपेगीं, फिर सागर से पानी लेंगी।
जहाँ- जहाँ भी जायेंगी, क्षमता साथ चलेगी॥
जनपथ को शीतलता देंगी, प्यासे खेतों में बरसेंगी।
धरती को सरसायेंगी, सबको शान्ति मिलेगी॥
गुरु ने ज्ञान सिन्धु लहराया, अपना अनुभव ज्ञान पिलाया।
जन- जन तक पहुँचायेंगी, युग की पीर मिटेगी॥
हरकर नारी की जड़ताएँ, और जगा उनकी क्षमताएँ।
सरिता सा लहरायेंगी, जब नारियाँ जगेंगी॥
महिला जागृति शंख बजाकर, नवयुग संदेश सुनाकर।
युग निर्माण करायेंगी हम, युग को बदलेंगी॥