हम भारत के सच्चे सेवक
हम भारत के सच्चे सेवक, दुनियाँ नई बनायेंगे।
देश, धर्म नैतिक शिक्षा को, जीवन में अपनायेंगे॥
सेवा कर्म हमारा व्रत हो, तन का रोम- रोम पुलकित हो।
कदम बढ़े जिस ओर हमारा, आँधी तूफाँ करे किनारा॥
हमने जीवन ध्येय विचारा, युग निर्माण करायेंगे॥
झूठे दम्भ पाखण्ड नहीं हो, नहीं द्वेष दुःख द्वन्द्व कहीं हो।
झलकें सद्विचार पर निर्झर, शांति संयम हो घर- घर॥
युग ने हमें पुकारा आओ मिलकर हाथ बटायेंगे॥
ऋषियों की संतान हमीं है, गुरु गौरव की खान हमीं हैं।
हमने दानव दल संहारे सिंहों के भी दाँत उखारें॥
ठुकराकर सारी विपदायें आगे बढ़ते जायेंगे॥
बहती हृदय कर्म की धारा, युग ने सौ- सौ बार पुकारा।
आत्म शक्ति अभिमान हमारा, प्रगति पंथ से प्यारा॥
वेदों की पावन वाणी को, द्वार- द्वार पहुँचायेंगे॥
संगीत की स्वर लहरियों का जादू जीवन में उल्लास की अनोखी सृष्टि तक ही सीमित नहीं है, इसका स्पर्श रोग- निवारक भी है।