हम धनी न चाहे हों
हम धनी न चाहे हों धन के, पर हृदय धनी होवें।
हम हँसे न चाहे सुख पाकर, पर दुःख में रोवें॥
हम कृषक बने तो हृदय खेत में प्रेम बीज बोवें।
हम सदा जागते रहें देश हित कभी नहीं सोवें॥
हम धनी- निर्धनी सुखी- दुःखी जैसे हों वैसे हों।
पर काम आ सकें कुछ स्वदेश के प्रभु हम ऐसे हों॥
हम योगी हों तो सब बिछ़ड़ों का योग मिला देवें।
हम वक्ता हों तो वाणी से अमृत बरसा देवें॥
हम हों ऐसे गुणवान रेत में पुष्प खिला देवें।
हम बली बहादुर हों ऐसे ब्रह्माण्ड हिला देवें॥