हम तो छोड़ चले घरबार
हम तो छोड़ चले घरबार, हम वैरागी हो गये।
हमसे दूर हुआ संसार, हम वैरागी हो गये॥
हमको हुई बहुत है देर, कोई रहा है हमको टेर।
देह तो है माटी का ढेर, नष्ट होगी यह देर सवेर॥
झूठा जग का प्यार दुलार, हम वैरागी हो गये॥
मेरा कभी न लेना नाम, मैं तो हुआ बहुत बदनाम।
हमें क्या नश्वर जग से काम, चाहिए नहीं हमें आराम॥
रहा है हमको समय पुकार, हम वैरागी हो गये॥
हमारी रही न कोई चाह,न तन,मन,धन की अब परवाह।
कठिन हो चाहे जितनी राह, हमें लेनी ही होगी थाह॥
करेंगे सात समुन्दर पार, हम वैरागी हो गये॥
जाना है गुरुवर के गाँव, जहाँ है शीतल शीतल छाँव।
उसी का आँवलखेड़ा नाम, जहाँ जन्में मेरे श्रीराम॥
वहीं है निराकार साकार, हम वैरागी हो गये॥
रहा सारा जीवन निष्काम, राम तो बस मेरा अभिराम।
हमारा बारम्बार प्रणाम, खुशी से छोड़ चला मैं धाम॥
मेरा नमन करो स्वीकार, हम वैरागी हो गये॥
मुक्तक-
राग से वैराग्य लेकर जा रहे हैं, स्वार्थ के सम्बन्ध सब झुठला रहे हैं।
राम के ही काम में, अब जा जुटेंगे, राम के कब से निमन्त्रण आ रहे हैं॥