गीत माला भाग १६

सद्गुरु! युग! ऋषि है

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सदगुरु! युग ऋषि! है नमन आपको।
यह सदी कर रही, स्मरण आपको।।

आपने तो इसे धन्य ही कर दिया।
और उल्टा उलट अन्य ही कर दिया।।
याद करता रहेगा भुवन आपको।।

क्रांतियों के लिए, आँधियों सा चलो।
भ्रांतियों को सजग रौंदते पग- तले।।
रास आया नहीं था, पतन आपको।।

जन्म की यह शती, प्रेरणा बन गई।
अनुचरों के लिए चेतना बन गई।।
कर रहे भेद श्रद्धा- सुमन आपको।।

नीव के पत्थरों सा पकाया हमें।
और निर्माण क्रम में लगाया हमें।।
है समर्पित यह तन और मन आपको।।

नव सृजन के लिए ईंट, गारा बनें।
और उज्ज्वल भविष्य का सितारा बनें।।
पूर्ण हो जो दिए हैं, वचन आपको।।

आप में अवतरित तो महाकाल है।
रुद्र से कम नहीं, नाथ पग- ताल हैं।।
युग बदलना कहाँ है कठिन आपको।।

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