प्रभुता की चाह बड़ी भारी, पर प्रभु से जुड़ा नहीं नाता।
देने से दुःख होता उनको, केवल समेटना ही भाता॥
वे दुर्विचार से प्रेरित हो, भीषण अनीति अपनाते हैं।
शोषण उत्पीड़न जीवन भर, करते पिशाच बन जाते हैं॥
दोहा- सुई नल जैसा कण्ठ है, मटके जैसा पेट।
होती नहीं पिशाच की, कभी तृप्ति से भेंट॥