यदि आत्मज्ञान को पाना है, तो कर्मशील बनना होगा।
ज्ञानयोग और भक्ति सूत्र को, एक रूप करना होगा॥
अन्यथा एकांगी ज्ञान सदा, बस अहंकार पनपाता है।
केवल ज्ञानी होकर कोई, नहीं ईश तत्व को पाता है॥
दोहा- सबसे बढ़- चढ़कर अरे, है बस आतम् ज्ञान।
जिसको पाकर मनुज ही, बनता है भगवान॥