गँवा दिया हमने जीवन में
गँवा दिया हमने जीवन में, धर्म और ईमान।
मिलेंगे फिर कैसे भगवान, मिलेंगे फिर कैसे भगवान॥
हमको दिया बहुत ईश्वर ने हमने नहीं सहेजा।
भूल गये किसलिए प्रभु ने, हमें धरा पर भेजा॥
कभी न मन से यहाँ सँवारा, ईश्वर का उद्यान।
किया इकट्ठा हमने केवल, अपना सुख सम्मान॥
पाई सुन्दर देह की जैसी, नहीं किसी प्राणी की।
सत्कर्मों की कभी न हमने, इससे अगवानी की॥
नहीं किसी पल आया हमको, किसी दुःखी का ध्यान।
दिया न तन से कभी किसी को, सुख सेवा का दान॥
बिन सोचे सर्वदा स्वार्थ में, अपना समय गँवाया।
धन तो बहुत कमाया लेकिन, सुख संतोष न पाया॥
लिया कष्ट में नाम राम का, किया न उसका काम।
भाग दौड़ में यहाँ बिताये, हमने आठों याम॥
श्रम का कोई अंश न बिल्कुल काम किसी के आया।
श्रम सेवा का पन्थ न हमने, कभी यहाँ अपनाया॥
किया यहाँ जो कुछ भी उसमें भरा रहा अभिमान।
नहीं सहज ही दिया किसी को, स्नेह और सम्मान॥
अपने हित चिन्तन में जीवन अब न बिताओ भाई।
तुम्हें मिली जो बुद्धि करो, अब उसमें पुण्य कमाई॥
परहित की दे हमें प्रेरणा वही श्रेष्ठ सद्ज्ञान।
है कुबुद्धि वह जिससे होता नहीं लोक कल्याण॥