गीत माला भाग ४

गुरु अपना तप देकर

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गुरु अपना तप देकर
गुरु अपना तप देकर करते आये, शिष्यों का निर्माण।
वही शक्ति पाकर शिष्यों ने, किये जगत में कार्य महान॥
यम ने नचिकेता को आत्मा की, महानता बतलाई।
अनुशासित शिष्यत्व निभाया, तभी तत्व की निधि पाई॥
है दुर्लभ अन्यत्र जगत में, ऐसा आत्मा का विज्ञान॥
गढ़ा राम को गुरु वशिष्ठ ने, हुआ असुर रावण का नाश।
सान्दीपनि का तेज कृष्ण में, गीता का कर दिया प्रकाश॥
बदले काल इन्होंने पाकर, अपने सद्गुरु से अनुदान॥
थे चाणक्य बुद्धि के स्वामी, उन्हें चाहिए थे दो हाथ।
चन्द्रगुप्त में क्षमता पायी, लिया देशहित उसका साथ॥
राजनीति का क्षेत्र जगाया, किया राष्ट्र भर का उत्थान॥
एक बार फिर घिरा घनों से, प्यारे भारत का आकाश।
प्राणनाथ ने छत्रसाल में फूँकी नव जागृति की श्वाँस॥
रामदास ने गढ़ा शिवाजी, हुआ देश का तब कल्याण॥
रामानन्द मिले तो अनुदान, ज्ञान कबीरा ने पाया।
मीरा ने रैदास शरण पा, कृष्ण प्रेम का गुण गाया॥
नर हरिदास मिले तुलसी को, उनने किया राम गुणगान॥
फिर से महाकाल ने ऐसा, ब्रह्मकमल उपजाया है।
जिसका सविता जैसा तेजस्, भू- मण्डल पर छाया है॥
आओ धारण करें उसे हम, और करें नवयुग निर्माण॥
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