गीत माला भाग ४

गुरुवर अपनी नाव

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गुरुवर अपनी नाव
गुरुवर अपनी नाव बिठा लो।
बिना नाव हम तर ना सकेंगे, डूब न जायें पार उतारो॥
अतल सिन्धु की है गहराई, है अदृश्य उसकी लम्बाई।
उफनाता भव सिन्धु देखकर, अपनी हिम्मत तो चकराई॥
अब जीवन का भार सम्भालो, गुरुवर अपनी नाव बिठा लो॥
षड विकार की भारी गठरी, छोड़ी नहीं जा रही फिर भी।
बोझा भी कम साथ नहीं है, लाद रखा है मन ने फिर भी॥
तुम तो अपनी नाव चढ़ा लो, गुरुवर अपनी नाव बिठा लो॥
तुम तो निर्विकार हो गुरुवर, फिर विकार से तुमको क्या डर।
ये सब अपने आप मरेंगे, कृपा कटाक्ष आपके पाकर॥
इन पर कोप दृष्टि तो डालो, गुरुवर अपनी नाव बिठा लो॥
बिना तुम्हारे डूब मरेंगे, जनम- जनम तक नहीं तरेंगे।
उतराई में गठरी ले लो, पार लगा दो याद करेंगे॥
सारे दुर्गुण दोष निकालो, गुरुवर अपनी नाव बिठा लो॥
नाम तुम्हारा सुनकर आये, तुमने अनगिन पार लगाये।
घाट- घाट पर हम भटके हैं, अब तो घाट आपके आये॥
शरण पड़े अब पार लगालो, त्राहिमाम्! गुरुदेव बचा लो॥
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