मुक्तक-
गुरुवर ने तप धार बहाई, हम उसमें स्नान करें।
गुरु की परम्परा अपनाकर, सफल दिव्य अभियान करें।।
गुरुवर के अनुपम अनुदानों
गुरुवर के अनुपम अनुदानों का वह ही अधिकारी है।
गुरु को अर्पित जीवन जिसका, और इच्छाएँ सारी है॥
लिए सुदृढ़ साहस गुरुकार्यों हित जो बढ़ता ही जाता।
लक्ष्य करने पूर्ण गुरु का, जो तूफानों से टकराता॥
पथ गुरु का दुर्गम चलने की, जिसने की तैयारी है॥
सुख सुविधा पद नाम यश से हुई न इच्छा यदि पूरी।
है समर्पण कहाँ गुरु को? श्रद्धा भी रह गई अधूरी॥
रहती गुरु से दूरी जब तक पीर न जग की प्यारी है॥
अनुदानों की शर्त यही है, हो अनुशासित जीवन अपना।
दर्द गुरु का बँटा सके जो पूर्ण करे उनका हर सपना॥
आदर्शों के हित मिट जाने का जो भी व्रतधारी है॥
ज्यों होती है पोली बंसी रिक्त स्वयं को कर लें हम।
कर समर्पित हृदय की वीणा शाश्वत स्वर फिर भर लें हम॥
पाने शक्ति गुरु की करनी, हमें यही तैयारी है॥
करुणा के सागर हैं वे भवरोगों के उपचार भी।
योगक्षेम वाहक हैं गुरुवर खेयेंगे पतवार भी॥
अर्पित उनके हाथों में जीवन की नाव हमारी है॥