गुरुवर कोई नहीं है
गुरुवर कोई नहीं है, जो हमको दे सहारा।
तेरे सिवा जगत में, कोई नहीं हमारा॥
मेरे ही प्राण हो, मेरे ही स्वांस तुम हो।
मेरे ही कर्म तुम हो, मेरे ही धर्म तुम हो॥
भटका हुआ मैं कब से, खोजा करूँ दुआरा॥
इन दु्रत गति क्षणों में, किसको समय कहाँ है।
पल पल में धोखा देकर, बढ़ता कौन कहाँ है॥
ऐसे भ्रमित क्षणों में, दे दो मुझे सहारा॥
सुख के क्षणों में सब हैं, रावण सभी यहाँ हैं।
लेकिन दुखित क्षणों में, साथी कोई नहीं है॥
मूर्छित पड़ी है दुनियाँ, उसका करो उद्घारा॥
न पद की हो चिन्ता, न धन की हो चिन्ता।
धन- पद ही तो सब कुछ, भवसागर में नचाता॥
इस कुचक्र से लड़ने का, मेरा बनो सहारा॥
संगीत न केवल विद्या है वरन् एक महाशक्ति भी है।
वाङमय १९ पृ. ६.३९