गीत माला भाग ४

क्रान्ति के तेवर अरे!

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क्रान्ति के तेवर अरे!
क्रान्ति के तेवर अरे! अब क्रान्ति के हैं।
एक क्षण भी नहीं विश्रान्ति के हैं॥
साधना अब औपचारिकता न होगी।
निठल्ली निष्प्राण कायरता न होगी॥
धर्म अब गोली नहीं होगी नशे की।
अब न क्षण आध्यात्मिक दिग्भ्रान्ति के हैं॥
अब न अक्षर काला होगा भैंस जैसा।
अब न शिक्षा का रहेगा रूप वैसा॥
शिक्षितों में अब प्रखर प्रज्ञा जगेगी।
शिक्षा के स्वर आज नैतिक- क्रान्ति के हैं॥
अब परावलम्बन न आएगा किसी को।
स्वावलम्बन रास आएगा सभी को॥
अन्नपूर्णा अब तो गौ माता बनेगी।
राष्ट्र के स्वर गौ- संवर्धन के हैं॥
प्रदूषण विष अब न जनमानस पीयेगा।
वृक्ष पूजक, हरीतिमा बिन क्यों रहेगा॥
तुलसी, पीपल, वट, अशोक दें प्राणवायु।
उभरते संकल्प हरीतिमा- क्रान्ति के हैं॥
कुरीति की जड़ उखाड़ी जायेगी अब।
तरूण पीढ़ी दुर्व्यसन दफनायेंगी अब॥
कुरीति, दुर्व्यसन मुक्त समाज होगा।
अन्त अब तो आत्मघाती- भ्रान्ति के हैं॥
ज्वार आया है कि नारी जागरण का।
नारियों द्वारा कि सद्साहस वरण का॥
नारियाँ कर रहीं नारी- युग तैयारी।
क्योंकि नारी युग सुनिश्चित शान्ति का है॥

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