खोलो मन के द्वार
(तर्ज- सावधान हो जाओ)
खोलो मन के द्वार, कि कोई आता है।
सुनी नहीं आवाज, कपाट बजाता है॥
काम, वासना ने पहरे, ऐसे बिठाये।
उनका विरोधी कोई आने न पाये॥
ऐसे में कोई भी आये तो कैसे आये रे।
बार बार आये द्वारे, आकर लौट जाये रे॥
अन्दर तक संदेश, नहीं जा पाता है॥
स्वागत करने वाले द्वारे ऐसे बिठा दें।
सदभावों के साथ उन्हें, अन्दर पहुँचा दें॥
कर ले अपने मन की, सद्भावों से सफाई रे।
निश्छल मन से कर ले, स्वागत की तैयारी रे॥
छल प्रपंच का भाव न, प्रभु को भाता है॥
अभिनन्दन करने को, मन का थाल सजा लें।
और आरती करने ज्ञान का, दीपक जला लें॥
प्यारा है प्रभु प्रेम भाव, मेरे भाई रे।
भाता न प्रभु को दिखावा, मेरे भाई रे॥
दुर्योधन को छोड़, विदुर घर खाता है॥
सादा जीवन उच्च विचार अपना बना लें।
मेरा कुछ भी नहीं भाव यह, मन में जगा लें॥
पायेगा प्रभु का प्यार, कोई मेरे भाई रे।
बाँटेगा सबको वही फिर, प्यार मेरे भाई रे॥
जन सेवक से ही प्रभु, रखता नाता है॥