गीत माला भाग ४

कुटिल चाल कलिकाल

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कुटिल चाल कलिकाल
कुटिल चाल कलिकाल चल रहा, युग की गति पहिचानों।
क्रूर- ध्वंस का साज सज रहा, चेत उठो दीवानों॥

इसीलिए तो महाकाल ने, चौदह वर्ष तपाया।
और साधना की भट्टी में, हमको सतत गलाया॥
क्या लोहा सोना बन पाया, इतना तो अनुमानो॥

जिनने बदल लिया अपने को, वे ही टिक पायेंगे।
महाकाल के वीरभद्र भी, वे ही कहलायेंगे॥
महाकाल के गण जैसा, ही अपना सीना तानों॥

महाशक्ति भी द्रवित हुई है, देख ध्वंस की चालें।
महाकाल भी कुपित हुआ है, भरने लगा उछालें।
युग परिवर्तन होना ही है, इसे सुनिश्चित जानों॥

अपनी सृष्टि न मिटने देंगे, युग सृष्टा संकल्पित।
सृजन सैनिकों को करती है, युग प्रज्ञा आमंत्रित॥
करो सृजन- संकल्प और अब, नये सृजन की ठानों॥

संगीत की गरिमा असीम है। उसे नाद ब्रह्मशब्द कहकर भगवान के समतुल्य ठहराया गया है।

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