चिंतन जिनका अतिशय पावन
चिंतन जिनका अतिशय पावन, अतिशय पावन नाम।
शिव स्वरूप उन सद्गुरु को है, बारम्बार प्रणाम।।
सद्गुरु बारम्बार प्रणाम, गुरुवर शत्- शत् तुम्हें प्रणाम्।।
जन्म शताब्दी पर्व, उन्हीं सद्गुरु का है अब आया।
दिव्य स्नेह के अभिसिंचन का, प्यार सभी ने पाया।।
अब कर्तव्य हमारा, उनके लिए हमें कुछ करना।
जीना उनके लिए हमें, केवल उनके हित मरना।।
लड़े एकजुट होकर हम सब, आध्यात्मिक संग्राम।
दिव्य ज्ञान की गंगा उनकी, पहुँचाएँ जन- जन तक।
सूर्य विचार- क्रान्ति का चमके, नगर- ग्राम घर- घर तक।।
श्रद्धा- निष्ठा, पूर्ण आस्था से आओ भर जाएँ।
हम अपना सर्वस्व लगाकर, श्रेय अलौकिक पायें।।
उठो! बढ़ो! संकल्पित होकर, करो नहीं विश्राम।
नए सृजन की, नए जोश से, करें नई तैयारी।
जन्मशताब्दी पर्व सफल हो, शक्ति झोंक दे सारी।।
देव संस्कृति के गरिमामय, अमित बनाएँ साधक।
जन- जन में देवत्व जगाएँ, बन तेजस्वी साधक।।
सद्गुरु चरण हृदय में रखकर, करें यही शुभ काम।
प्रेम और सम्मान सहित, कर युवा शक्ति को आगे।
अवसर मिले उन्हें, उनमें भी नई प्रेरणा जागे।।
कर्तव्यों का भार, सबल कंधे ही ढो पाएँगे।
वृद्धों के अनुभव, उन सबके बहुत काम आएँगे।।
करे युवाओं का आवाहन, जा- जाकर हर ग्राम।
मुक्तक- अब विचार परिवर्तन की है जन्मशताब्दी आयी।
इससे होगा अखिल विश्व का, जीवन अब सुखदायी।।