गंगा बन्दी थी सुरपुर में
गंगा बन्दी थी सुरपुर में, भागीरथ ने मुक्त कराया।
भागीरथ का ही प्रचण्ड तप, मृत्युलोक में सुरसरि लाया॥
गंगा बन्धन मुक्त हो गई, राजा, रंक सभी को तारा।
पतित और पावन दोनों के लिए, खुल गया उसका द्वारा॥
इतना ही क्यों, निज प्रवाह को कोटि- कोटि जन तक पहुँचाया॥
पतित पावनी गायत्री भी, कीलित ही मानी जाती थी।
कुछ विशिष्ट लोगों द्वारा ही बना ली गई निज थाती थी॥
पर गुरुवर के प्रचण्ड तप ने, जन- जन को उपलब्ध कराया॥
अब ‘गायत्री’ विश्वव्यापिनी, आदिशक्ति होती जाती है।
ऊँच- नीच का भेद भुला करके, पातक धोती जाती है॥
गुरुवर श्रीराम शर्मा ने, युग भागीरथ का यशपाया॥
आओ! नमन करें गंगा के, गायत्री के भागीरथ को।
श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ आओ! कोटि- कोटि जन उद्वारक को॥
उनको गायत्री जयन्ती पर, गायत्री ने गले लगाया॥
नाद के ‘‘आहत’’ और ‘‘अनाहत’’ दो भेद हैं। आघात या घर्षण से उत्पन्न प्रत्यक्ष सुनाई देने वाला नाद ‘‘आहत’’ और स्वम्भू या अन्तर में अनुभव किया जाने वाला नाद ‘‘अनाहत’’ है। इसमें अनुकरण युक्त रंजक ‘‘आहत नाद’’ ही संगीतोत्पत्ति का मूल कारण है।