गीत माला भाग ५

गुरुवर महान गुरुवर सुजान

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गुरुवर महान गुरुवर सुजान
गुरुवर महान, गुरुवर सुजान, गुरु स्वयं बन गये महाकाल।
गुरुपूर्ण मुक्ति, गुरु दिव्य शक्ति, ब्रह्माण्ड गुरु के दिव्य भाल॥
जय महाकाल, जय महाकाल॥
गुरु का हृदय बहुत कोमल है, भाव शिष्य में भरते हैं।
कड़े हाथ अन्दर रखकर के, शिष्यों को गुरु गढ़ते हैं॥
गुरुवर कुम्हार, गुरुवर लुहार, गुरु से चलती है सृष्टि चाल।
गुरु राम रूप, गुरु कृष्ण रूप, गुरु शिष्यों की बनते हैं ढाल॥
गुरु चरणों में ध्यान जो धरते, शिष्य धन्य हो जाते हैं।
गुरु कसौटी में कसकर वे, आत्मा को चमकाते हैं॥
गुरुवर सुनार, गुरुवर लुहार, गुरुवर पहनाते विजय माल।
गुरु सूर्य रूप, गुरु सत्य रूप, गुरु शिष्यों के रक्षक विशाल॥
पूर्ण समर्पण जो करते हैं, दुःख को गुरु हर लेते हैं।
राह दिखाते हर पल, हर क्षण, चरणों में रख लेते हैं॥
गुरु शान्तिकुञ्ज, गुरु सूर्यपुञ्ज, गुरु कष्ट मिटाते बन कराल।
गुरु रामकृष्ण, गुरुवर कबीर, गुरु सृष्टिगान की दिव्य ताल॥
गुरु के निर्देशों में जीवन, शिष्य नहीं जो जीते हैं।
मुक्ति दूर कोसों रह जाती, कष्ट अनेकों सहते हैं॥
गुरु स्वर्ग लोक, गुरु दिव्य लोक, गुरु वक्र दृष्टि के महाकाल।
गुरु चरण स्वर्ग, गुरु चरण मुक्ति, गुरुवर भक्तों के महाकाल॥
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