जाग पहरूबे सुहानी भोर
जाग पहरूबे जाग, सुहानी भोर है,
नवयुग का है नया सवेरा।
कहता मन का भोर है, सुहानी भोर है....॥
छोड़ चले नीड़ों को पंछी, कर्म क्षेत्र के गाँवों में।
तू अब तक सो रहा, बावरे भोर किरण की छावों में॥
तुझे जगाने को पंछी दल, देख मचाता शोर है॥
कर्मक्षेत्र में पड़ी दरारें, तुझको ही वो भरनी है।
नवयुग की निर्माण शपथ, तुझको ही पूरी करनी है॥
देख कह रही तुझसे, क्या वो गंगा जमुन हिलोर है॥
काम अधिक है जीवन थोड़ा, सोते ही यदि बीत गया।
फिर न मिलेगा स्वर्ग सवेरा, बीत गया सो बीत गया॥
तेरे बिगड़े काज बनाने, को श्रम ही सिर मोर है॥
सबसे प्रथम गान करते हुए परमेश्वर के मुख से जो गीत निकला वही ‘गायत्री’ है।
- वाङमय१९ पृ.३.२५