जहाँ सत्संग होता है
जहाँ सत्संग होता है, वहाँ पर नित्य जाओ तुम।
हमें फुरसत नहीं कहकर, ये मौका मत गँवाओ तुम॥
अरे सत्संग करने की ना कोई उम्र होती है।
अमर ये दीप है इसकी कभी बुझती ना ज्योति है।
इसी ज्योति से जीवन की सदा ज्योति जलाओ तुम॥
जरा अनुभव तो कर देखो, कि क्या बदलाव आता है।
कपट सब दूर होता है, हृदय निर्मल हो जाता है।
इन्हीं सत्संगियों के संग में, सदा डुबकी लगाओ तुम॥
करके एकाग्र मन को तुम, जाके सत्संग को सुनना।
होके तल्लीन भावों के, सुनहरे फूलों को चुनना।
इस सत्संग सागर में, सदा डुबकी लगाओ तुम॥
चढ़े एक बार फिर उतरे नहीं, सत्संग का ये रंग।
बिना प्रभु की कृपा मिलता नहीं सत्संगियों का संग।
गुरु संतों की सेवा कर, सदा सान्निध्य पाओ तुम॥
गायत्री वेदों की जननी है। गायत्री पापनाशिनी है। गायत्री से बड़ा और पवित्र करने वाला मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है।
- शंखस्मृति 12/24,25