जय जय गायत्री माता
जय जय जय गायत्री माता, माता तुम सद्बुद्धि प्रदाता।।
सुख साधन बढ़ते जाते हैं, फिर भी शान्ति नहीं पाते हैं।
सुविधाओं के ढेर लग रहे, पर अतृप्त हो रह जाते हैं॥
सच्ची तृप्ति हमें दो माता, माता तुम हो शक्ति प्रदाता॥
हम सब राग द्वेष में जलते, हमको औरों के सुख खलते।
नये- नये नित रूप बनाकर, लोभ मोह हमको है छलते॥
हमें मुक्ति दो इनसे माता, माता तुम सद्बुद्धि प्रदाता।।
विष घुल रहा हमारे मन में, घुस बैठा वह ही चिन्तन में।
चिन्तन का जहरीलापन ही, घोल रहा है विष जीवन में।।
जीवन अमृत विष हो जाता, माता तुम सद्बुद्धि प्रदाता।।
माता अब सद्बुद्धि हमें दो, चिन्तन की समृद्धि हमें दो।
सादा- जीवन उच्च- विचारों, वाली जीवन सिद्धि हमें दो॥
जहाँ सुमति सुख सम्पत्ति पाता, माता तुम सद्बुद्धि प्रदाता।।
मनोविकारों के निवारण में संगीत को सफल उपचार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
डॉ. वाल्टर क्यूग