जिसने मरना सीख लिया
जिसने मरना सीख लिया है, जीने का अधिकार उसी को।
जो कांटो के पथ पर आया, फूलों का अधिकार उसी को॥
जिसने गीत सजाये अपने, तलवारों के झन झन स्वर पर।
जिसने विप्लव राग अलापे, रिम झिम गोली के वर्षण पर।
जो बलिदानों का प्रेमी है, है जगती का प्यार उसी को॥
हँस- हँसकर एक मस्ती लेकर, जिसने सीखा है बलि होना।
अपनी पीड़ा पर मुस्काना, औरों के कष्टों पर रोना।
जिसने सहना सीख लिया है, संकट है त्यौहार उसी को॥
दुर्गमता लख बीहड़ पथ की, जो न कभी भी रुका कहीं पर।
अनगिनते आघात सहे पर, जो न कभी भी झुका कहीं पर।
झुका रहा है मस्तक अपना, यह सारा संसार उसी को॥
संगीत यदि निर्दोष हो तो उसमें मनुष्य की भावुकता भरी प्रसन्नता थिरकती है और वह नाड़ी समूह में सम्मिलित होकर एक ऐसा पोषण प्रदान करती है जो मन को हलका बनाने और उत्साह को जगाने में विशेष रूप से काम आता है।
-नादब्रह्म शब्दब्रह्म पृ. 5.34