जा बेटी ससुराल में जाके
(बेटी की विदाई, छत्तीसगढ़ी गीत)
जा बेटी ससुराल में जाके, सुन्दर कमाके खाबे ओ।
दाई- ददा के सुध झन करबे, कुल के लाज बचाबे ओ॥
सास- ससुर के सेवा बजाबे, पतिव्रता बन जाबे ओ।
सती सावित्री, सीता जइसे, दुनियाँ में नाम कमाबे ओ॥
पति परमेश्वर मान के बेटी, पूजा के फूल चढ़ाबे ओ।
जा बेटी ससुराल में जाके, सुन्दर कमाके खाबे ओ॥
पति ला हँसाबे पति ला रिझाबे, तैं आँसू पी जाबे ओ।
पति के सुख में साथ रहिबे, अउ दुःख म हाथ बटाबे ओ॥
पति संगवारी के रहिबे पिछारी, पति ले झन अघुवाबे ओ।
जा बेटी ससुराल में जाके, सुन्दर कमाके खाबे ओ॥
गाँव के छुट ही तोर संगवारी, छुटके अंगना दुवारी तोर।
छुटगे मइया, भाई, बहिनी, छुटगे पिता महतारी तोर॥
झन छुटै तोर सास- ससुर अऊ, जीवन भरके स्वामी तोर।
जा बेटी ससुराल में जाके, सुन्दर कमाके खाबे ओ॥
संगीत आत्मा के ताप को शान्त कर सकता है।
- महात्मा गाँधी