मुक्तक-
महाक्रान्ति का लक्ष्य आपने, हमें दे दिया दिव्य महान।
कूद पड़े हम शपथ उठाकर, रच देंगे नूतन अभियान॥
जगजननी जगदम्ब भवानी
जग- जननी जगदम्ब भवानी, वीणा- वादिनी ज्ञान भरो।
ममतामयी माँ, मन प्राणों को, अविरल स्नेह प्रदान करो।।
जीर्ण- शीर्ण प्राचीन हटाकर, नूतन संचार करें।
जन- मानस में सद्भावों की, परिवर्तन रसधार भरें।।
घृणा, द्वेष से मुक्ति दिलाकर, बासन्ती मुस्कान भरो।।
खिले फूल की तरह हंसे जग, ऐसी कृपा दृष्टि कर दो।
हर्षित- पुष्पित और पल्लवित, शाखाएँ हों सृष्टि कर दो।।
देवसंस्कृति के स्वर गूँजे, भावों में प्रबल उफान भरो।।
राष्ट्रधर्म का परिपालन हम, कर पायें सद्भाव जगाकर।
स्वर्ग समान करें यह धरती, अपनी प्रतिभा समय लगाकर।।
तेजस्, ओजस्, वर्चस् देकर, उर को ऊर्जावान करो।।